Saturday, February 4, 2012

स्पेक्ट्रम नीति बनाएगा ट्राई

नई दिल्ली [दिनेश शुक्ल ]। रद हुए लाइसेंस बांटने की प्रक्रिया में अपनी भूमिका पर सवाल उठने के बाद एक बार फिर से ट्राई ने फिर स्पेक्ट्रम आवंटन की नीति बनाने का काम शुरू कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट की भारतीय दूरसंचार नियामक [ट्राई] के खिलाफ टिप्पणियों के मद्देनजर अब उसके लिए यह काम ज्यादा चुनौती भरा होगा। फिर से स्पेक्ट्रम बांटने की प्रक्रिया में ट्राई के सामने सबसे बड़ा सवाल आवंटन की पारदर्शिता और कीमत तय करने का होगा।


पूर्व दूरसंचार मंत्री ए राजा के कार्यकाल में जारी 122 लाइसेंस रद करने वाले फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने ट्राई की इस मामले में रही भूमिका को लेकर तीखी आलोचना की है। खासतौर पर स्पेक्ट्रम की कीमत तय करने और उसके बेहतर इस्तेमाल के मामले में शीर्ष अदालत ने माना है कि ट्राई ने वर्ष 1999 की दूरसंचार नीति के उद्देश्यों को पूरी तरह अनदेखा कर दिया। इतना ही नहीं नियामक ने वर्ष 2003 में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा पारदर्शी तरीके से स्पेक्ट्रम के आवंटन संबंधी फैसले की भी अनदेखी की है। ऐसे में ट्राई को स्पेक्ट्रम आवंटन की दोबारा शुरू हुई प्रक्रिया बेहद चुनौतीपूर्ण हो गई है।


सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में स्पेक्ट्रम आवंटन से जुड़े पूरे मामले में ट्राई के दिशानिर्देशों को भी बेहद कमजोर बताया है। अपने क्षेत्र की विशेषज्ञ संस्था होने के बावजूद ट्राई ने राष्ट्रीय संपदा के आवंटन में कुछ लोगों के फायदे के लिए काम किया। सुप्रीम कोर्ट ने भी माना कि ट्राई को संविधान के मूलभूत नियमों को नजरअंदाज कर सिफारिशें नहीं करनी चाहिए थीं।


ट्राई पर एंट्री फीस के निर्धारण को लेकर भी सवाल खड़े किए गए हैं। 122 लाइसेंस के लिए यह शुल्क निर्धारित करते हुए ट्राई ने इसे 2001 की कीमत पर तय करने के बारे में स्पष्ट सिफारिश नहीं की। यही वजह है कि ट्राई केंद्रीय मंत्रिमंडल के फैसले से एकदम अलग सिफारिश करती रही। स्पेक्ट्रम की कीमत तय करने से पहले वित्त मंत्रालय से विचार-विमर्श की परंपरा का पालन भी ट्राई ने नहीं किया। कोर्ट की टिप्पणियों को देखते हुए इस बार ट्राई के लिए ऐसा कर पाना मुश्किल होगा। अदालत का मानना है कि ट्राई को इसके लिए वित्त मंत्रालय के साथ बातचीत करनी चाहिए।